(नागपत्री एक रहस्य-16)
पुजारी जी के समझाइश को अनसुना करते हुए विकास और सुधा दोनों स्तंभों के बीच से प्रथम द्वार के सम्मुख पहुंचे, देखा तो वह द्वार बंद था, जिसे सुधा ने बड़े गौर से देख कर विकास से इशारों में ही बात की,
और दोनों ने एक दूसरे की बातें समझ उस द्वार पर बने नागरूपी सरंचनाओं को प्रणाम किया, और उसी पल वो दरवाजा गड़गड़ाहट के साथ बाहर की और खुलने लगा, जैसे यह दरवाजा खुला एक तेज फुंकार के साथ उन्होंने वहां पर एक विशालकाय नाग को देखा।
जिसका मात्र आधा हिस्सा ही जमीन पर नजर आता था, बाकी हिस्सा शायद मानव रूपी था, और फिर मंदिर जितना बाहर से दिखने में सामान्य और छोटा लगता था, ठीक उसके विपरीत ब्रह्म कमलनुमा आकृति की तरह ही भीतर से विशाल और रहस्यमई लगता था,
सुधा और विकास उस नाग के कमरबंद में लगे मणियों के प्रकाश से निकलने वाले तेज रोशनी को बर्दाश्त नहीं कर पाए, और बहुत कोशिश कर उन्होंने सिर्फ उस भव्य स्वरूप का सिर्फ आधा हिस्सा ही देख पाया।
सुधा यह देखकर हैरान थी, कि उसके जो पिताजी आज से बारह वर्ष पूर्व मानव देह त्याग चुके थे, वह वहां खड़े होकर पंखा झल रहे थे, ठीक ऐसी ही स्थिति कुछ विकास की भी थी, वे दोनों इतनी चकाचौंध रोशनी और अपने पूर्वजों के आभामंडल देखकर अत्यंत भययुक्त आश्चर्य से अपने घुटने टेक कर बैठ गए और अपने इष्टदेव का स्मरण करने लगे।
जब उन्होंने आंख खोलकर देखा तो सामने कुछ भी नहीं था, बस सिर्फ मंदिर के किसी अनजान छोर से तेज और शीतल हवाएं बड़े आवेग से दरवाजे की ओर बढ़ रही थी।
वायु गति को सुधा और विकास अपने उड़ते हुए बालों और कपड़ों से स्पष्ट अनुभव कर रहे थे, उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी पहाड़ी के शिखर पर खड़े हो, बस एक पल तो उनका जी चाहा कि यहां से ही लौट चले,
लेकिन सुधा की उत्सुकता जैसे बढ़ती ही जा रही थी, विकास खुद हैरान था कि सुधा4 अचानक इतनी निडर कैसे हो गई, और आखिर वह आगे क्यों जाना चाहती है???
वह निश्चिंत हो विकास का हाथ पकड़ ऐसी बहादुरी से आगे बढ़ रही थी कि लगता है, जैसे वह मंदिर का चप्पा-चप्पा जानती हो।
वही विकास शांतिपूर्वक उसका साथ देने के लिए विवश था, वह अत्यंत सजगता से आगे बढ़ते जा रहा था, इतना शीतल वातावरण और मंदिर के अंदर अजीब सी नीली रोशनी वहां भय और भक्ति दोनों का मिश्रित अनुभव जागृत कर रही थी।
जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहे थे, वैसे वैसे उन्होंने अनुभव किया कि धीरे-धीरे उनका भय समाप्त होते जा रहा है और वह किसी अनजाने आकर्षण की ओर खिंचे चले जा रहे हैं।
मात्र कुछ पदों की दूरी चलते ही उन्होंने देखा कि उस मंदिर का संपूर्ण वातावरण अचानक बदलने लगा, जो नीली रोशनी नजर आ रही थी, वह एकदम से सूर्य की तेज रोशनी में परिवर्तित हो गई।
अब तक सुधा और विकास दोनों ही भली-भांति समझ चुके थे कि यह कोई सामान्य मंदिर नहीं है ,और ना ही यहां से बिना प्रभु की इच्छा के लौट पाना संभव है।
वैसे भी अब उनका भय जाता रहा, तब रहस्य जैसे उनके वर्तमान समय का हिस्सा सा बन गया था, सुधा और विकास ने देखा कि वहां जाकर एक दूसरे से बात करना भी संभव नहीं है, वह दोनों कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन जैसे उनकी अंतरात्मा उनको इजाजत नहीं दे रही थी।
वहां आसपास दो बड़े कुंड में विशाल नाग प्रतिमाएं हाथ में दंड लिए अर्धमानव आकार में खड़ी थी, उससे भी बड़े आश्चर्य की बात तो यह थी कि उन दोनों पर यह ना जाने कहां से गुलाब मिश्रित जल की वर्षा हो रही थी, पूरा वातावरण उसकी खुशबू से अत्यंत मनमोहक सा बन रहा था, समय-समय पर सूर्य की रोशनी तो कुछ समय पर नीली आभा की तरह रोशनी।
उन्होंने देखा कि एक छोटा सा शिवलिंग जो वास्तव में शिवलिंग की तरह स्थापित किया गया था, लेकिन वह एक शिवजी के सिर की तरह एक रचना थी, जिसमें अत्यंत सौम्य रूप में चारों तरफ मुख किए शिवजी का प्रतिबिंब नजर आता था, और ठीक उनके माथे से गंगा निकलकर स्वयं शिवलिंग का अभिषेक सा कर रही हो ऐसा जान पड़ता था।
दोनों ने जितना और जैसा जानते थे ,उतना प्रभु का पूजन और स्मरण किया, तत्पश्चात जैसे ही उन्होंने अंतिम आहुति के रूप में भगवान को नमस्कार किया वैसे ही वह शिवलिंग धीरे-धीरे अपनी ही जगह जमीन में धंसता चला गया और उसके ठीक ऊपर दाई ओर बनी हुई नाग प्रतिमा अपने स्थान पर घूमने लगी।
तभी वह शिवलिंग अचानक विलुप्त सा हो गया, और उस पर चढ़ाया हुआ कमल का फूल जिसे उन्होंने वहीं पास में प्रकट हुए पूजा पात्र से उठाया था, वापस उठकर सुधा और विकास के हाथ में आ गए, और उसी प्रकार अगला दरवाजा उन्हें स्पष्ट रूप से नजर आने लगा, जिसे अभी तक देख पाना संभव नहीं था।
उस दरवाजे के दोनों और दो नागकन्या खड़ी हुई थी, और दोनों के ही हाथ इस तरह रिक्त थे, जैसे पूर्व में उन्होंने किसी फूल की पंखुड़ी पकड़ रखी हो, लेकिन वर्तमान में रिक्त कैसे उन दोनों के अभी तक के अनुभव से वह जान चुके थे , कि उनके हाथों में जो कमल के फूल है वहीं इस दरवाजे की कुंजी है।
उन्होंने अपने-अपने कमल के दोनों फूलों को उन दोनों नागकन्याओं के हाथ में रख दिया, जैसे उन्होंने उनके हाथों में उन कमल पुष्प को रखा है, दोनों ही नागकन्या जीवित हो उठी, उनका आकार ठीक उसी तरह और आधा मनुष्य का था, उन्होंने मुस्कुरा कर उन दोनों को आशीष दिया, इसी प्रकार अगला दरवाजा खुल गया।
दरवाजा खुलने से पहले ही विकास और सुधा के मन में अजीब अजीब सी कल्पनाएं जन्म ले रही थी, वह जानने को बहुत उत्सुक थे कि आखिर दूसरे दरवाजे के भीतर उन्हें अब क्या देखने के लिए मिलेगा??? और वे दोनों ही अगला दरवाजा खुलने के इंतजार में ही थे,
सुधा और विकास के मन में थोड़ी थोड़ी खुशी और थोड़ा थोड़ा भय भी जागृत हो रहा था, लेकिन उनकी उत्सुकता देख ऐसा लग रहा था, कि बस जल्द से जल्द उन्हें यह अगला दरवाजा और उसके भीतर का दृश्य दिखे।
आखिर अगले दरवाजे के भीतर उन्हें क्या देखने के लिए मिलेगा???
क्रमशः.....
Babita patel
15-Aug-2023 02:01 PM
Nice
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